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"फ़रियाद की कोई लै नहीं है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

20:15, 10 मार्च 2010 का अवतरण

फ़रियाद की कोई लै<ref>स्वर माधुर्य, धुन</ref> नहीं है
नाला<ref>शोक</ref> पाबनद-ए-नै<ref>बांसुरी पर निर्भर</ref> नहीं है

क्यूं बोते हैं बाग़-बान तूंबे<ref>खट्टा कद्दू</ref>
गर बाग़ गदा-ए-मै<ref>शराब का भिखारी</ref> नहीं है

हर-चन्द<ref>बेशक</ref> हर एक शै में तू है
पर तुझ-सी कोई शै नहीं है

हाँ, खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती<ref>अस्तित्व का धोखा</ref>
हर-चन्द कहें कि 'है', नहीं है

शादी<ref>ख़ुशी</ref> से गुज़र, कि ग़म न रहवे
उरदी<ref>बसंत(महीने का पारसी नाम)</ref> जो न हो, तो दै<ref>पतझड़(महीने का पारसी नाम)</ref> नहीं है

क्यूं रद्द-ए-क़दह<ref>प्याला तोड़ना</ref> करे है, ज़ाहिद<ref>तपस्वी</ref>
मै है ये, मगस<ref>मधुमकखी</ref> की क़ै<ref>उल्टी,वमन</ref> नहीं है

हस्ती है न कुछ अ़दम<ref>अवास्तविक</ref> है 'ग़ालिब'
आख़िर तू क्या है, ऐ, 'नहीं' है

शब्दार्थ
<references/>