"नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=ग़ालिब | + | |रचनाकार= ग़ालिब |
+ | |संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | नुक्ताचीं<ref>गलतीयां निकालने वाली</ref> है, ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने | ||
+ | क्या बने बात, जहाँ बात बनाये न बने | ||
− | + | मैं बुलाता तो हूँ उस को, मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल | |
− | + | उस पे बन जाये कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने | |
− | + | खेल समझा है, कहीं छोड़ न दे भूल न जाये | |
− | + | काश! यूँ भी हो कि बिन मेरे सताये न बने | |
− | + | ग़ैर फिरता है, लिए यों तेरे ख़त को कि अगर | |
− | + | कोई पूछे कि ये क्या है, तो छुपाये न बने | |
− | + | इस नज़ाकत<ref>कोमल स्वभाव</ref> का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या | |
− | + | हाथ आयें, तो उन्हें हाथ लगाये न बने | |
− | + | कह सके कौन कि ये जल्वागरी<ref>वैभव</ref> किसकी है | |
− | + | पर्दा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने | |
− | + | मौत की राह न देखूँ, कि बिन आये न रहे | |
− | + | तुम को चाहूँ कि न आओ, तो बुलाये न बने | |
− | + | बोझ वो सर पे गिरा है कि उठाये न उठे | |
− | + | काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने | |
− | + | इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब" | |
− | + | कि लगाये न लगे और बुझाये न बने | |
− | + | </poem> | |
− | इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब" | + | {{KKMeaning}} |
− | कि लगाये न लगे और बुझाये न बने < | + |
23:04, 10 मार्च 2010 का अवतरण
नुक्ताचीं<ref>गलतीयां निकालने वाली</ref> है, ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने
क्या बने बात, जहाँ बात बनाये न बने
मैं बुलाता तो हूँ उस को, मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाये कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने
खेल समझा है, कहीं छोड़ न दे भूल न जाये
काश! यूँ भी हो कि बिन मेरे सताये न बने
ग़ैर फिरता है, लिए यों तेरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है, तो छुपाये न बने
इस नज़ाकत<ref>कोमल स्वभाव</ref> का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या
हाथ आयें, तो उन्हें हाथ लगाये न बने
कह सके कौन कि ये जल्वागरी<ref>वैभव</ref> किसकी है
पर्दा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने
मौत की राह न देखूँ, कि बिन आये न रहे
तुम को चाहूँ कि न आओ, तो बुलाये न बने
बोझ वो सर पे गिरा है कि उठाये न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब"
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने