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|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
नुक्ताचीं<ref>गलतीयां निकालने वाली</ref> है, ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने
क्या बने बात, जहाँ बात बनाये न बने
नुक्ताचीं है ग़ममैं बुलाता तो हूँ उस को, मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल उस को सुनाये न बने <br>क्या बने बात जहाँ बात बनाये पे बन जाये कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने <br><br>
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल <br>उस पे बन खेल समझा है, कहीं छोड़ न दे भूल न जाये कुछ ऐसी काश! यूँ भी हो कि बिन आये मेरे सताये न बने <br><br>
खेल समझा ग़ैर फिरता है कहीं छोड़ न दे, भूल न जाये <br>लिए यों तेरे ख़त को कि अगर काश यूँ भी हो कोई पूछे कि बिन मेरे सताये ये क्या है, तो छुपाये न बने <br><br>
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को कि अगर इस नज़ाकत<brref>कोमल स्वभाव</ref> का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या कोई पूछे कि ये क्या है हाथ आयें, तो छुपाये उन्हें हाथ लगाये न बने <br><br>
इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या कह सके कौन कि ये जल्वागरी<brref>वैभव</ref> किसकी है हाथ आयें तो उन्हें हाथ लगाये पर्दा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने <br><br>
कह सके कौन मौत की राह न देखूँ, कि ये जल्वागरी किसकी है <br>बिन आये न रहे पर्दा छोड़ा है वो उसने तुम को चाहूँ कि उठाये न आओ, तो बुलाये न बने <br><br>
मौत की राह न देखूँ बोझ वो सर पे गिरा है कि बिन आये उठाये रहे <br>उठे तुम को चाहूँ काम वो आन पड़ा है कि न आओ तो बुलाये बनाये न बने <br><br>
बोझ वो सर पे गिरा है कि उठाये न उठे <br>काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने <br><br> इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब" <br>कि लगाये न लगे और बुझाये न बने <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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