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02:17, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
ख़मोशियों में तमाशा, अदा निकलती है
निगाह दिल से तेरे सुरमा-सा<ref>सुरमा लगाए हुए</ref> निकलती है
फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़लवत<ref>एकांत की संकीर्णता का दबाव</ref> से बनती है शबनम
सबा<ref>सुबह की हवा</ref> जो ग़ुंचे<ref>कली</ref> के परदे में जा निकलती है
न पूछ सीना-ए-आ़शिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह<ref>नज़र की कटार का तीखापन</ref>
कि ज़ख़्म-ए-रौज़न-ए-दर<ref>दरवाज़े का रौशनदान</ref> से, हवा निकलती है
शब्दार्थ
<references/>