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02:17, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना<ref>कामना के इंद्रजाल का तमाशा देखने वाला</ref>
मतलब नहीं कुछ इस से कि मतलब ही बर<ref>पूरा हो</ref> आवे
सियाही जैसे गिर जावे दम-ए-तहरीर<ref>लिखने के वक्त</ref> काग़ज़ पर
मेरी क़िस्मत में यूँ तस्वीर है शब-हाए-हिज़रां<ref>जुदाई की रातें</ref> की
शब्दार्थ
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