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"बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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02:22, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल<ref>बच्चों का खेल</ref> है दुनिया, मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़<ref>रात और दिन</ref> तमाशा, मेरे आगे

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमां<ref>सुलेमान नामक अवतार का राजसिंहासन</ref> मेरे नज़दीक
इक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा<ref>ईसा का चमत्कार जिनकी फूँक से मुर्दे जीवित हो उठते थे</ref>, मेरे आगे

जुज़<ref>के सिवा</ref> नाम, नहीं सूरत-ए-आ़लम<ref>संसार का अस्तित्व</ref> मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम, नहीं हस्ती-ए-अशया<ref>अस्तित्व जैसी चीज़</ref>, मेरे आगे

होता है निहाँ<ref>लुप्त</ref> गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं<ref>माथा</ref> ख़ाक पे दरिया, मेरे आगे

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे

सच कहते हो, ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा<ref>गर्वितऔर आत्म-अलंकृत</ref> हूँ, न क्यों हूँ
बैठा है बुत-ए-आईना<ref>प्रिय का दर्पण</ref> सीमा<ref>विशेषकर</ref>, मेरे आगे

फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार<ref>बात का अंदाज़ यूँ कि जैसे फूल झड़ते हों</ref>
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा<ref>मधुपात्र और मदिरा</ref>, मेरे आगे

नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा
क्योंकर कहूँ, लो नाम न उनका मेरे आगे

ईमाँ<ref>धर्म</ref> मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र<ref>अधर्म</ref>
काबा मेरे पीछे है, कलीसा<ref>गिरजाघर</ref> मेरे आगे

आशिक़ हूँ, पे माशूक़-फ़रेबी<ref>माशूक़ को रिझाने का काम</ref> है मेरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला, मेरे आगे

ख़ुश होते हैं, पर वस्ल में, यूँ मर नहीं जाते
आई शबे-हिजराँ<ref>विरह-रात्रि</ref> की तमन्ना, मेरे आगे

है मौज-ज़न<ref>लहरें मारता हुआ</ref> इक क़ुल्ज़ुमे-ख़ूँ<ref>रक्त का समुद्र</ref> काश! यही हो
आता है अभी देखिये क्या-क्या, मेरे आगे

गो हाथ को जुम्बिश<ref>हरक़त</ref> नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना<ref>शराब का प्याला और सुराही</ref>, मेरे आगे
 
हमपेशा-ओ-हमशरब-ओ-हमराज़<ref>सहव्यवसायी/सहपंथी,मेरे जैसा शराबी और विश्वासपात्र</ref> है मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यों, कहो अच्छा, मेरे आगे

शब्दार्थ
<references/>