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"वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब
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02:27, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण

वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब<ref>बेचैनी को तसल्ली</ref> तो दे
वले<ref>अगर कहीं</ref> मुझे तपिश-ए-दिल<ref>दिल की गर्मी</ref> मजाल-ए-ख़्वाब<ref>सोने की काबलियत</ref> तो दे

करे है क़त्ल, लगावट<ref>छेड़ना,तंग करना</ref> में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग़े-निगह की आब तो दे

दिखा के जुंबिश<ref>हरकत</ref>-ए-लब ही तमाम कर हमको
न दे जो बोसा, तो मुँह से कहीं जवाब तो दे

पिला दे ओक<ref>हाथों का प्याला</ref> से साक़ी, जो हमसे नफ़रत है
प्याला गर नहीं देता न दे, शराब तो दे

"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ-पाँव फूल गए
कहा जो उसने, ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे

शब्दार्थ
<references/>