{{KKRachna
|रचनाकार= ग़ालिब
|संग्रह= दीवान-एदीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
मू-ए-शीशा<ref>शीशे पर तरेड़</ref> दीदा-ए-साग़र<ref>प्याले की आँख</ref> की मिज़ग़ानी<ref>पलक बनना</ref> करे
ख़त्त-ए-आ़रिज़<ref>गाल के रोअेंरोयें</ref> से लिखा है, ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने अ़हद<ref>फैसला</ref>
यक-क़लम मंज़ूर है, जो कुछ परेशानी करे
</poem>
{{KKMeaning}}