"फिर इस अन्दाज़ से बहार आई / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=ग़ालिब | + | |रचनाकार= ग़ालिब |
+ | |संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
− | <poem>फिर इस अंदाज़ से बहार आई | + | <poem> |
+ | फिर इस अंदाज़ से बहार आई | ||
कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई | कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई | ||
− | देखो, ऐ | + | देखो, ऐ साकिनान-ए-ख़ित्त-ए-ख़ाक<ref>धरती के वासियो</ref> |
− | इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना</ref> | + | इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना,विश्व-शृँगार |
+ | </ref> | ||
− | कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref> | + | कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref>एक कोने से दूसरे कोने तक</ref> |
− | रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>आसमान जैसी | + | रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>नीले आसमान जैसी फैली हुई</ref> |
− | सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली | + | सब्ज़ा<ref>हरियाली</ref> को जब कहीं जगह न मिली |
− | बन गया | + | बन गया रू-ए-आब<ref>पानी की सतह</ref> पर काई |
− | सब्ज़ा-ओ-गुल के देखने के लिये | + | सब्ज़ा-ओ-गुल<ref>हरियाली और गुलाब</ref> के देखने के लिये |
− | चश्मे-नर्गिस को दी है बीनाई | + | चश्मे-नर्गिस<ref>नरगिस की आँख</ref> को दी है बीनाई<ref>दृष्टि</ref> |
− | है हवा में शराब की तासीर | + | है हवा में शराब की तासीर<ref>असर</ref> |
− | बादा-नोशी है बाद-पैमाई<ref>हवा | + | बादा-नोशी<ref>शराब पीना</ref> है बाद-पैमाई<ref> हवा खाना</ref> |
क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब" | क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब" | ||
− | शाह-ए- | + | शाह-ए-दींदार<ref>आस्तिक सम्राट |
+ | </ref> ने शिफ़ा<ref>रोग से छुटकारा</ref> पाई | ||
+ | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
02:43, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कि हुए मेहरो-मह<ref>चांद-सूरज</ref> तमाशाई
देखो, ऐ साकिनान-ए-ख़ित्त-ए-ख़ाक<ref>धरती के वासियो</ref>
इसको कहते हैं आलम-आराई<ref>दुनिया को सजाना,विश्व-शृँगार
</ref>
कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर<ref>एक कोने से दूसरे कोने तक</ref>
रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई<ref>नीले आसमान जैसी फैली हुई</ref>
सब्ज़ा<ref>हरियाली</ref> को जब कहीं जगह न मिली
बन गया रू-ए-आब<ref>पानी की सतह</ref> पर काई
सब्ज़ा-ओ-गुल<ref>हरियाली और गुलाब</ref> के देखने के लिये
चश्मे-नर्गिस<ref>नरगिस की आँख</ref> को दी है बीनाई<ref>दृष्टि</ref>
है हवा में शराब की तासीर<ref>असर</ref>
बादा-नोशी<ref>शराब पीना</ref> है बाद-पैमाई<ref> हवा खाना</ref>
क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब"
शाह-ए-दींदार<ref>आस्तिक सम्राट
</ref> ने शिफ़ा<ref>रोग से छुटकारा</ref> पाई