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02:43, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
ग़ैर लें महफ़िल में, बोसे<ref>चुम्बन</ref> जाम के
हम रहें यूँ तिश्ना-लब<ref>सूखे होंठ</ref> पैग़ाम<ref>संदेश</ref> के
ख़स्तगी<ref>थकावट,टूट-फूट</ref> का तुम से क्या शिकवा, कि ये
हथकंडे हैं चर्ख़े-नीली फ़ाम<ref>नीला आसमान</ref> के
ख़त लिखेंगे, गर्चे<ref>भले ही</ref> मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
रात पी ज़मज़म<ref>एक पवित्र ताल का पानी,</ref> पे मय और सुबह-दम
धोए धब्बे जामा-ए-अहराम<ref>तीर्थ-यात्रा पर पहने जाने वाले पवित्र वस्त्र</ref> के
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े<ref>छल्ले,फन्दे </ref> हैं तुम्हारे दाम<ref>जाल</ref> के
शाह की है ग़ुस्ले-सेहत<ref>स्वास्थ्य-स्नान</ref> की ख़बर
देखिये, कब दिन फिरें हम्माम<ref>नहाने की जगह</ref>के
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के