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"आवाज एक पुल है / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर
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उसकी विशिष्टता | उसकी विशिष्टता | ||
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− | सहमत हो जाता | + | सहमत हो जाता हूँ। |
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10:59, 14 मार्च 2010 के समय का अवतरण
अनेक बार
चाहते हुए भी
मैं सहमत नहीं हो पाता
उस से
मंतव्य अपने
समझा भी नहीं पता
एक शून्य फैल जाता है
बीच में
तब
उससे करता हूँ उम्मीद
कि वह मरम्मत करे
दरकते हुए पुल की
आवाज़ दे मुझे
क्योंकि आवाज़ एक पुल है
पर किसी रहस्यमयी
ठण्ड की वजह से
जो हमारे भीतर कहीं
गहराई में बसती है
आवाज़ तब बर्फ़ हो जाती है
जब महकना चाहिए उसे
कॉफ़ी की ख़ुशबू की तरह
संवादहीनता के ठण्डे स्पर्श से
अपनापन तिड़कने लगता है
काँच की तरह
तब
ध्रुवों से सर्द बियावान
अकेलेपन से घबराकर
मैं
असहमति को
उसकी विशिष्टता
मान लेने को
सहमत हो जाता हूँ।