"हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=ग़ालिब | |रचनाकार=ग़ालिब | ||
+ | |संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem>हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' | <poem>हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' | ||
− | तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है | + | तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू<ref>बातचीत का तरीका</ref> क्या है |
− | न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा | + | न शो'ले<ref>ज्वाला</ref> में ये करिश्मा न बर्क़<ref>बिज़ली</ref> में ये अदा |
− | कोई बताओ कि वो शोखे- | + | कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू<ref>शरारती-अकड़ वाला</ref> क्या है |
− | ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न तुमसे | + | ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न<ref>अकसर बातें करना</ref> तुमसे |
− | वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद- | + | वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू<ref>दुश्मन के सिखाने-पढ़ाने का डर</ref> क्या है |
− | चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन | + | चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन<ref>चोला</ref> |
− | हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है | + | हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू<ref>रफ़ू करने की जरूरत</ref> क्या है |
− | जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा | + | जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा |
− | कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है | + | कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू<ref>तलाश</ref> क्या है |
− | रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल | + | रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल<ref>प्रभावित होना</ref> |
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है | जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है | ||
− | वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़ | + | वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त<ref>स्वर्ग</ref> अज़ीज़<ref>प्रिय</ref> |
− | सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू<ref>सुगंधित शराब</ref> क्या है | + | सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू<ref>गुलाबी कस्तूरी-सुगंधित शराब</ref> क्या है |
− | पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार | + | पियूँ शराब अगर ख़ुम<ref>शराब के ढ़ोल</ref> भी देख लूँ दो-चार |
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू<ref>बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश</ref> क्या है | ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू<ref>बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश</ref> क्या है | ||
− | रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी | + | रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार<ref>बोलने की ताकत</ref> और अगर हो भी |
− | तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है | + | तो किस उमीद<ref>उम्मीद</ref> पे कहिए कि आरज़ू क्या है |
− | हुआ है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता | + | हुआ है शह का मुसाहिब<ref>ऱाजा का दरबारी</ref>, फिरे है इतराता |
− | वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है | + | वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू<ref>प्रतिष्ठा</ref> क्या है |
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
06:59, 15 मार्च 2010 का अवतरण
हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू<ref>बातचीत का तरीका</ref> क्या है
न शो'ले<ref>ज्वाला</ref> में ये करिश्मा न बर्क़<ref>बिज़ली</ref> में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू<ref>शरारती-अकड़ वाला</ref> क्या है
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न<ref>अकसर बातें करना</ref> तुमसे
वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू<ref>दुश्मन के सिखाने-पढ़ाने का डर</ref> क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन<ref>चोला</ref>
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू<ref>रफ़ू करने की जरूरत</ref> क्या है
जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू<ref>तलाश</ref> क्या है
रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल<ref>प्रभावित होना</ref>
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त<ref>स्वर्ग</ref> अज़ीज़<ref>प्रिय</ref>
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू<ref>गुलाबी कस्तूरी-सुगंधित शराब</ref> क्या है
पियूँ शराब अगर ख़ुम<ref>शराब के ढ़ोल</ref> भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू<ref>बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश</ref> क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार<ref>बोलने की ताकत</ref> और अगर हो भी
तो किस उमीद<ref>उम्मीद</ref> पे कहिए कि आरज़ू क्या है
हुआ है शह का मुसाहिब<ref>ऱाजा का दरबारी</ref>, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू<ref>प्रतिष्ठा</ref> क्या है