भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक सम्मोहन लिए हर बात में / कुमार विनोद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विनोद }} {{KKCatGhazal}} <poem> एक सम्मोहन लिए हर बात में …)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:36, 17 मार्च 2010 के समय का अवतरण

एक सम्मोहन लिए हर बात में
हर तरफ़ बैठे शिकारी घात में

आने वाली नस्ल को हम दे चुके
दो जहाँ की मुश्किलें सौग़ात में

बादलों का स्वाद चखने हम चले
तानकर छाता भरी बरसात में

आप जिंदा हैं, ग़नीमत जानिए
कम नहीं ये आज के हालात में

जगमगाते इस शहर को क्या पता
फ़र्क़ भी होता है कुछ दिन-रात में

मोम की क़ीमत नहीं कुछ इन दिनों
छोड़िये, रक्खा है क्या जज़्बात में