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"जीवन है इक दौड़ सभी हम भाग रहे हैं / कुमार विनोद" के अवतरणों में अंतर

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वो जीवन मे सुख पा लेते भी तो कैसे
 
वो जीवन मे सुख पा लेते भी तो कैसे
जिनको ड़सते इच्छाओं के नाग रहे हैं
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जिनको डसते इच्छाओं के नाग रहे हैं
  
 
रंगों से नाता ही मानो टूट गया हो
 
रंगों से नाता ही मानो टूट गया हो
अपने जावन मे ऐसे भी फाग रहे हैं
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अपने जीवन मे ऐसे भी फाग रहे हैं
 
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20:42, 17 मार्च 2010 के समय का अवतरण

जीवन है इक दौड़ सभी हम भाग रहे हैं
बिस्तर पे काँटों के हम सब जाग रहे हैं

कागज़ की धरती पर जो बन फूल खिलेंगे
वही शब्द सीनों मे बन कर आग रहे हैं

हर कोई पा ले अपने हिस्से का सूरज
कहाँ सभी के इतने अच्छे भाग रहे हैं

वो जीवन मे सुख पा लेते भी तो कैसे
जिनको डसते इच्छाओं के नाग रहे हैं

रंगों से नाता ही मानो टूट गया हो
अपने जीवन मे ऐसे भी फाग रहे हैं