भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धुंध में लिपटा हुआ साया कोई / कुमार विनोद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विनोद }} {{KKCatGhazal}} <poem> धुंध में लिपटा हुआ साया क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:44, 17 मार्च 2010 के समय का अवतरण
धुंध में लिपटा हुआ साया कोई
आज़माने फिर हमें आया कोई
दिन किसी अंधे कुएँ में जा गिरा
चाँद को घर से बुला लाया कोई
चिलचिलाती धूप में तनहा शजर
बुन रहा किसके लिए छाया कोई
दुश्मनी भी एक दिन कहने लगी
दोस्ती-जैसा न सरमाया कोई
पेड़ जंगल के हरे सब हो गए
ख़्वाब आँखों में उतर आया कोई
आज की ताज़ा ख़बर इतनी-सी है
गीत चिड़िया ने नया गाया कोई
दूसरों से हो गिला क्यों कर भला
कब, कहाँ ख़ुद को समझ पाया कोई