भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काश उससे मेरा फ़ुरकत का ही रिश्ता निकले / तुफ़ैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem>काश उससे मेरा फ़ुरक…)
(कोई अंतर नहीं)

23:50, 17 मार्च 2010 का अवतरण

काश उससे मेरा फ़ुरकत का ही रिश्ता निकले
रास्ता कोई किसी तरह वहाँ जा निकले

लुत्फ़ लौटायेंगे अब सूखते होठों का उसे
एक मुद्दत से तमन्ना थी वो प्यासा निकले

फूल-सा था जो तेरा साथ, तेरे साथ गया
अब तो जब निकले कभी शाम को तन्हा निकले

हम फ़क़ीराना मिज़ाजों की न पूछो भाई
हमने सहरा में पुकारा है तो दरिया निकले

पहले इक घाव था अब सारा बदन छलनी है
ये शिफ़ा बख्शी, ये तुम कैसे मसीहा निकले

मत कुरेदो, न कुरेदो मेरी यादों का अलाव
क्या खबर फिर वो सुलगता हुआ लम्हा निकले

हमने रोका तो बहुत फिर भी यूँ निकले आँसू
जैसे पत्थर का जिगर चीर के झरना निकले