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"गुलशन की तेरी सोहबत अज़ बसकि ख़ुश आई है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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गुलशन को तेरी सोहबत अज़ बसकि ख़ुश<ref>पसंद</ref> आई है
हर ग़ुंचे का गुल होना आग़ोश-कुशाई<ref>आलिंगन खुलना</ref> है
वां कुनगुर-ए-इसतिग़ना<ref>बेपरवाही का मुकुट</ref> हर दम है बुलंदी पर
यां नाले को और उलटा दावा-ए-रसाई<ref>ढिठाई</ref> है
अज़ बसकि सिखाता है ग़म, ज़ब्त के अन्दाज़े
जो दाग़ नज़र आया इक चश्म-नुमाई<ref>फटकार</ref> है
शब्दार्थ
<references/>