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01:50, 18 मार्च 2010 के समय का अवतरण
अ़जब निशात<ref>खुशी</ref> से, जल्लाद के, चले हैं हम आगे
कि, अपने साए से, सर पाँव से है दो क़दम आगे
क़ज़ा<ref>किस्मत</ref> ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बादा-ए-उलफ़त<ref>शराब के प्यार में बरबाद करना</ref>
फ़क़त<ref>सिर्फ</ref>, 'ख़राब', लिखा बस, न चल सका क़लम आगे
ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी, निशात-ए-इश्क़<ref>प्रेम-उल्लास</ref> की मस्ती
वगरना हम भी उठाते थे लज़्ज़त-ए-अलम<ref>दुःख का मजा</ref> आगे
ख़ुदा के वास्ते, दाद उस जुनून-ए-शौक़<ref>प्रेम का पागलपन</ref> की देना
कि उस के दर पे पहुंचते हैं नामा-बर<ref>डाकिया</ref> से हम आगे
यह उ़मर भर जो परेशानियां उठाई हैं हम ने
तुम्हारे आइयो<ref>तुम्हारे सामने आए</ref>, ऐ तुर्रा हाए-ख़म-ब-ख़म<ref>उलझी ज़ुल्फों वाली</ref> आगे
दिल-ओ-जिगर में पर-अफ़शां<ref>फड़फड़ा रही है</ref> जो एक मौज-ए-ख़ूं<ref>रक्त्त का लहर</ref> है
हम अपने ज़ोअम<ref>अंहकार</ref> में समझे हुए थे उस को दम<ref>साँस</ref> आगे
क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे