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"जो न नक़्दे-दाग़े-दिल की करे शोला पासबानी / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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18:57, 18 मार्च 2010 के समय का अवतरण

जो न नक़्दे-दाग़े-दिल<ref>दिल के ज़ख्म रूपी मुद्रा</ref> की करे शोला<ref>आंच</ref> पासबानी<ref>रखवाली</ref>
तो फ़ुसुर्दगी<ref>दुख</ref> निहां<ref>छुपा हुआ</ref> है, ब कमीने<ref>घात में</ref>-बे-ज़बानी

मुझे उस से क्या तवक़्क़ो<ref>उम्मीद</ref> ब ज़माना-ए-जवानी<ref>जवानी का वक्त</ref>
कभी कूदकी<ref>बचपन</ref> में जिस ने न सुनी मेरी कहानी

यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब<ref>अच्छा</ref>, वरना कहता
कि मेरे अ़दू<ref>दुश्मन</ref> को या रब मिले मेरी ज़िंदगानी

शब्दार्थ
<references/>