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"जुनूं तोहमत-कशे-तस्कीं न हो गर शादमानी की / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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जुनूं<ref>उन्माद</ref> तोहमत-कशे-तस्कीं<ref>जिस पर आराम का आरोप लगे</ref> न हो, गर शादमानी<ref>खुशी मनाना</ref> की
नमक-पाशे-ख़राशे-दिल<ref>दिल के जख्म पर नमक छिड़कना</ref> है लज़्ज़त<ref>मजा</ref> ज़िन्दगानी की
कशाकशा-ए-हस्ती<ref>अस्तित्व,जीवन के झमेले</ref> से करे क्या सई-ए-आज़ादी<ref>आजाद होने की इच्छा</ref>
हुई ज़ंजीर, मौज-ए-आब<ref>पानी की लहर</ref> को, फ़ुर्सत<ref>आराम से</ref> रवानी<ref>बहना</ref> की
पस-अज़-मुर्दन<ref>मरने के बाद भी</ref> भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़लां<ref>बच्चों के लिए मज़ार</ref> है
शरार-ए-संग<ref>पत्थर से निकली चिंगारी</ref> ने तुरबत<ref>कब्र</ref> पे मेरी गुल-फ़िशानी<ref>गुलाब की वर्षा</ref> की
शब्दार्थ
<references/>