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"नदिया के पार / जब तक पूरे न हो फेरे सात" के अवतरणों में अंतर
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रचनाकार: रविंद्र जैन |
जब तक पूरे न हों फेरे सात
तब तक दुल्हिन नहीं दुल्हा की
तब तक बबुनी नहीं बबुआ की
अबही तो बबुआ पहली भँवर पड़ी है
अभी तो पहुना दिल्ली दूर खड़ी है
पहली भँवर पड़ी है,दिल्ली दूर खड़ी है
करनी होगी तपस्या सारी रात
सात फेरे सात जन्मों का साथ...
जैसे जैसे भँवर पड़े मन अंगना को छोड़े
एक एक भाँवर नाता अन्जानों से जोड़े
घर अंगना को छोड़े, नाता अन्जानों से जोड़े
सुख की बदरी आंसू की बरसात
सात फेरे सात जन्मों का साथ...
सात फेरे धरो तब हाँ भरो सात वचन की
ऐसे कन्या कैसे अर्पण कर दे तन की मन की
उठो उठो बबुनी देखो ध्रुव तारा
ध्रुव तारे से हो अमर सुहाग तिहारा
देखो ध्रुव तारा, अमर सुहाग तिहारा
सातों फेरे सातों जन्मों का साथ...