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उपकार / मेरे देश की धरती

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|रचनाकार=गुलशन बावराइंदीवर
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मेरे देश की धरती सोना उगले , उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते मुस्काते हैंसुन के रहट की आवाज़ें यों यूँ लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजे पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती हैइस धरती पे जिसने जनम जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरायहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे है माँ उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
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