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"मि. नटवरलाल / मेरे पास आओ मेरे दोस्तो" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकार् - आनन्द् बक्षी'''
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|रचनाकार= आन्नद बख़्शी
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आओ बच्चो
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आओ बच्चो आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ मैं
आज् तुम्हे एक् कहानी सुनाता हू मै
+
शेर की कहानी सुनोगे
शेर् कि कहानि सुनोगे
+
आजा मुन्ना हम .....
+
  
मेरे पास् आओ मेरे दोस्तों एक् किस्सा सुनो
+
मेरे पास आओ मेरे दोस्तो एक क़िस्सा सुनो
मेरे पास् आओ मेरे दोस्तों एक् किस्सा सुनो
+
कई साल पहले की ये बात है
क्ई साल् पहले की ये बात् है
+
भयानक अंधेरी सियाह रात में
बोलो न चुप् कीउ हो गये
+
लिये अपनी बन्दूक मैं हाथ में
 +
घने जंगलों से गुज़रता हुआ कहीं जा रहा था
 +
जा रहा था, नहीं आ रहा था, नहीं जा रहा था
  
भयानक् अन्धेरी सी हा रात् मे
+
ओफ़ ओ आगे भी तो बोलो ना
लिये अपनी बन्दूक् मैं हाथ् में
+
घने जंगलो से गुजार्ता हु कही जा रहा था
+
घने जंगलो से गुजार्ता हु कही जा रहा था
+
जा रहा था
+
नही आ रहा था
+
नही आ रहा था
+
ओफ्फो आगे भी तो बोलो ना
+
  
बताता हू बताता हू
+
बताता हूँ बताता हूँ
नही भूल्ती उफ्फ् वो जंगल् की रात्
+
 
मुझे याद् है वो थी मंगल् की रात्
+
नहीं भूलती उफ्फ़ वो जंगल की रात
 +
मुझे याद है वो थी मंगल की रात
 
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
 
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
हनुमान् चालीस पढ्ता हुआ
+
हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ
  
बोलो हनुमान् की जय्
+
बोलो हनुमान की जय
जय् जय् बजरंग् बली कि जय्
+
जय बजरंग बली की जय
हाँ बोलो हनुमान् कि जय्
+
जय् हो बजरंग् बली की जय्
+
  
घडी थी अन्धेरा मगर् सख्त् था
+
घड़ी थी अन्धेरा मगर सख़्त था
कोई दस् सवा दस् का वक्त् था
+
कोई दस सवा दस का बस वक़्त था
लरजता था कोयल् कि भी कूक् से
+
लरज़ता था कोयल की भी कूक से
बुरा हाल् हु उस् पे भूख् से
+
बुरा हाल हुआ उस पे भूख से
लगा तोड्ने एक् बेरि से बेर्
+
लगा तोड़ने एक बेरी से बेर
मेरे समने आ गया एक् शेर्
+
मेरे सामने आ गया एक शेर
  
कोई घिग्घी बनती नजर् फिर् ग्ई
+
जो घिघ्घी बँधी नज़र फिर गई
तो बन्दूक् भी हाथ् से गिर् ग्ई
+
तो बन्दूक भी हाथ से गिर गई
मैने लपका वो झपका
+
 
मै उपर् वो नीचे
+
मैं लपका वो झपका, मैं ऊपर वो नीचे
वो आगे मै पीछे
+
वो आगे मैं पीछे, मैं पेड़ पे वो पीछे
मै पेड् पे वो पीछे
+
अरे बचाओ -२
अरे बचाओ अरे बचाओ
+
मैं डाल-डाल वो पात-पात
मै डाल् डाल् वो पात् पात्
+
मैं पसीना वो बाग़-बाग़
मै पसीना वो बाग् बाग्
+
मैं सुर में वो ताल में
मै सुर् मेइ वो ताल् मेइ
+
ये जंगल पाताल में
ये जंगल् पाताल् मे
+
 
बचाओ बचाओ
 
बचाओ बचाओ
 
अरे भागो रे भागो
 
अरे भागो रे भागो
 
अरे भागो
 
अरे भागो
फिर् क्या हुआ
 
  
खुदा की कसम् मजा आ गया
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फिर क्या हुआ?
मुझे मार् कर् बेशरम् खा गया
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खा गया
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ख़ुदा की क़सम मज़ा आ गया
लेकिन् आप् तो जिन्दा है
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मुझे मार कर बेसरम खा गया
अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लु
+
 
हाँ
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खा गया? लेकिन आप तो ज़िन्दा हैं
ला ला ला रा ला ला ...........
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अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लू
 
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04:23, 20 मार्च 2010 का अवतरण

रचनाकार: आन्नद बख़्शी                 

आओ बच्चो आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ मैं
शेर की कहानी सुनोगे

मेरे पास आओ मेरे दोस्तो एक क़िस्सा सुनो
कई साल पहले की ये बात है
भयानक अंधेरी सियाह रात में
लिये अपनी बन्दूक मैं हाथ में
घने जंगलों से गुज़रता हुआ कहीं जा रहा था
जा रहा था, नहीं आ रहा था, नहीं जा रहा था

ओफ़ ओ आगे भी तो बोलो ना

बताता हूँ बताता हूँ

नहीं भूलती उफ्फ़ वो जंगल की रात
मुझे याद है वो थी मंगल की रात
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ

बोलो हनुमान की जय
जय बजरंग बली की जय

घड़ी थी अन्धेरा मगर सख़्त था
कोई दस सवा दस का बस वक़्त था
लरज़ता था कोयल की भी कूक से
बुरा हाल हुआ उस पे भूख से
लगा तोड़ने एक बेरी से बेर
मेरे सामने आ गया एक शेर

जो घिघ्घी बँधी नज़र फिर गई
तो बन्दूक भी हाथ से गिर गई

मैं लपका वो झपका, मैं ऊपर वो नीचे
वो आगे मैं पीछे, मैं पेड़ पे वो पीछे
अरे बचाओ -२
मैं डाल-डाल वो पात-पात
मैं पसीना वो बाग़-बाग़
मैं सुर में वो ताल में
ये जंगल पाताल में
बचाओ बचाओ
अरे भागो रे भागो
अरे भागो

फिर क्या हुआ?

ख़ुदा की क़सम मज़ा आ गया
मुझे मार कर बेसरम खा गया

खा गया? लेकिन आप तो ज़िन्दा हैं

अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लू