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"घराना / दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ" के अवतरणों में अंतर

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05:00, 20 मार्च 2010 के समय का अवतरण

रचनाकार: शकील बदायूनी                 

दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ
छोड़ो जी ये ग़ुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ

छोटी-छोटी बातों पे न बिगड़ा करो
ग़ुस्सा हो तो ठण्डा पानी पी लिया करो
खाली-पीली अपना कलेजा न जलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

दादी तुम्हें हम तो मना के रहेंगे
खाना अपने हाथों से खिला के रहेंगे
चाहे हमें मारो चाहे हमें धमकाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

कहो तो तुम्हारी हम चम्पी कर दें
पियो तो तुम्हारे लिये हुक्का भर दें
हँसी न छुपाओ ज़रा आँखें तो मिलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

हमसे जो भूल हुई माफ़ करो माँ
गले लग जाओ दिल साफ़ करो माँ
अच्छी सी कहानी कोई हमको सुनाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...