"नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो (नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का / ग़ालिब का नाम बदलकर नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहर) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | नक़्श<ref> | + | नक़्श<ref>चित्र</ref> फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर<ref>शरारत भरी लिखावट</ref> का |
− | काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर<ref> | + | काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर<ref>व्यक्ति (यहाँ इसका मतलब)</ref>-ए-तस्वीर का |
− | + | काव-काव<ref>खोदना</ref>-ए सख़्तजानी<ref>कठिन ज़िंदगी</ref> हाय तनहाई न पूछ | |
सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर<ref>दूध की नदी</ref> का | सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर<ref>दूध की नदी</ref> का | ||
− | जज़्बा-ए-बेअख़्तियारे-शौक़ देखा चाहिए | + | जज़्बा<ref>तीव्र उमंग</ref>-ए-बेअख़्तियारे-शौक़ देखा चाहिए |
− | सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का | + | सीना-ए-शमशीर<ref>तलवार की मयान</ref> से बाहर है दम<ref>सिरा</ref> शमशीर का |
आगही<ref>समझ</ref> दामे-शुनीदन<ref>प्रसिद्दी का जाल</ref> जिस क़दर चाहे बिछाए | आगही<ref>समझ</ref> दामे-शुनीदन<ref>प्रसिद्दी का जाल</ref> जिस क़दर चाहे बिछाए | ||
− | मुद्दआ़ अ़न्क़ा<ref>दुर्लभ</ref> है अपने आ़लमे-तक़रीर का | + | मुद्दआ़ अ़न्क़ा<ref>दुर्लभ</ref> है अपने आ़लमे-तक़रीर<ref>बातचीत की दुनिया</ref> का |
बस कि हूँ "ग़ालिब" असीरी<ref>कैद</ref> में भी आतिश-ज़ेर-पा<ref>पांव के नाचे की आग</ref> | बस कि हूँ "ग़ालिब" असीरी<ref>कैद</ref> में भी आतिश-ज़ेर-पा<ref>पांव के नाचे की आग</ref> | ||
− | मूए-आतिश-दीद़ा<ref>जला हुआ बाल</ref> है हल्क़ा मेरी ज़ंजीर का</poem> | + | मूए-आतिश-दीद़ा<ref>जला हुआ बाल</ref> है हल्क़ा<ref>कड़ी</ref> मेरी ज़ंजीर का</poem> |
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
02:05, 23 मार्च 2010 का अवतरण
नक़्श<ref>चित्र</ref> फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर<ref>शरारत भरी लिखावट</ref> का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर<ref>व्यक्ति (यहाँ इसका मतलब)</ref>-ए-तस्वीर का
काव-काव<ref>खोदना</ref>-ए सख़्तजानी<ref>कठिन ज़िंदगी</ref> हाय तनहाई न पूछ
सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर<ref>दूध की नदी</ref> का
जज़्बा<ref>तीव्र उमंग</ref>-ए-बेअख़्तियारे-शौक़ देखा चाहिए
सीना-ए-शमशीर<ref>तलवार की मयान</ref> से बाहर है दम<ref>सिरा</ref> शमशीर का
आगही<ref>समझ</ref> दामे-शुनीदन<ref>प्रसिद्दी का जाल</ref> जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ अ़न्क़ा<ref>दुर्लभ</ref> है अपने आ़लमे-तक़रीर<ref>बातचीत की दुनिया</ref> का
बस कि हूँ "ग़ालिब" असीरी<ref>कैद</ref> में भी आतिश-ज़ेर-पा<ref>पांव के नाचे की आग</ref>
मूए-आतिश-दीद़ा<ref>जला हुआ बाल</ref> है हल्क़ा<ref>कड़ी</ref> मेरी ज़ंजीर का