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"कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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खूं किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया
  
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हाल-ए-दिल नहीं मालूम, लेकिन इस क़दर यानी
 
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02:30, 23 मार्च 2010 के समय का अवतरण

कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ कि गुम कीजे? हमने मुद्दआ़<ref>विरोध करना</ref> पाया

इश्क़ से तबीअ़त ने ज़ीस्त<ref>जिंदगी</ref> का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बे-दवा<ref>बिना दवाई के</ref> पाया

दोस्त दारे-दुश्मन<ref>दुश्मन का दोस्त</ref> है, एतमादे-दिल<ref>दिल का विश्वास</ref> मालूम
आह बेअसर देखी, नाला<ref>रुदन</ref> नारसा<ref>निरर्थक</ref> पाया

सादगी व पुरकारी<ref>चालाकी</ref> बेख़ुदी व हुशियारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल<ref>बे-परवाही</ref> में जुरअत-आज़मा<ref>हिम्मत की परख</ref> पाया

ग़ुञ्चा फिर लगा खिलने, आज हम ने अपना दिल
खूं किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया

हाल-ए-दिल नहीं मालूम, लेकिन इस क़दर यानी
हम ने बारहा<ref>बार बार</ref> ढूंढा, तुम ने बारहा पाया

शोर-ए-पन्दे-नासेह<ref>उपदेशक के उपदेश का शोर</ref> ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मज़ा पाया

ना असद जफ़ा-साइल<ref>ज़ुल्म करने वाला</ref> ना सितम जुनूं-माइल<ref>पागलपन की हद तक</ref>
तुझ को जिस क़दर ढूंढा उल्फ़त-आज़मा<ref>प्यार की परख करना वाला</ref> पाया

शब्दार्थ
<references/>