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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>दिल मेरा सोज़े-निहां<ref>आंतरिक जलन</ref> से बेमहाबा<ref>एकदम</ref> जल गया
आतिशे-ख़ामोश<ref>मूक आग</ref> के मानिन्द गोया जल गया
आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया
मैं अ़दम<ref>अस्तित्वहीनता</ref> से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल <ref>बे-परवाह</ref> बारहा <ref>कई बार</ref>
मेरी आहे-आतशीं<ref>जलती हुई आह</ref> से बोले-अ़न्क़ा<ref>अ़नक़ा नामक पक्षी का पंख</ref> जल गया
अर्ज़ कीजे जौहरेजौहर-ए-अन्देशा<ref>चिन्तन-तत्वचिंता की प्रकृति</ref> की गर्मी कहाँ
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया
मैं हूँ और अफ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref> की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल
देखकर तर्ज़े-तपाके<ref>व्यवहार का ढंग</ref>-अहलेअहल<ref>लोग</ref>-ए-दुनिया जल गया </poem>
{{KKMeaning}}
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