"माया पहाड़ की / दामोदर जोशी 'देवांशु'" के अवतरणों में अंतर
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+ | ठण्डी है हवा, ठण्डा है पानी | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी | ||
+ | किसी ने न जानी, किसी ने न जानी | ||
+ | किसी ने न जानी, ठण्डा है पानी।। | ||
+ | वेदों की वाणी, यहाँ ज्ञान की खानें | ||
+ | ऋषि -मुनियों की यह राजधानी | ||
+ | गो-मुख गंगा, सरयू का पानी | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | चोटियाँ, छोटी नदियाँ, गहरे पाताल से | ||
+ | धर्म का धाम, यह देवताओं का धाम | ||
+ | क्या ही अच्छे लोग, क्या ही सुन्दर वाणी | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | हरि का हरिद्वार यहाँ बद्री-केदार | ||
+ | बद्री केदार यहाँ गंगा की धार | ||
+ | काफल, बांज के घने जंगल | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | सुन्दर हिमालय का मुकुट दिखता यहाँ से | ||
+ | क्या ही सुन्दर देश कमाल दिखता यहाँ से | ||
+ | भट, गहत, गेहूँ, कोन्दों की दानी | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | टेढ़े-मेढ़े रास्ते, पनघट घूमते हैं | ||
+ | वन-वन कोहरा, झरने नाचते हैं | ||
+ | हमारे यहाँ है बहुत काम | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | बुराँश खिला है उस पार पहाड़ी में | ||
+ | मुझे लग रहा है मेरी रानी | ||
+ | बांज के जंगल में बसे मेरे प्राण | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | धन की खान यह पहाड़ों की रानी | ||
+ | ले जाओ न मेरे पहाड़ को चुन चुन कर | ||
+ | बड़ा कठिन है पहाड़ को देखना | ||
+ | माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।। | ||
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+ | '''मूल कुमाउनी पाठ''' | ||
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+ | ठण्डि छ हावा, ठण्डो छ पाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी | ||
+ | कैलै न जॉंणी, कैलै न जॉंणी | ||
+ | कैलै न जॉंणी, ठण्डो छ पॉंणी ।। | ||
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+ | वेदोंकि वाणी या ज्ञानकि खांणि | ||
+ | ऋषि-मुनियोंकि यो राजधाणी | ||
+ | गो-मुख गंगा सरमूल पाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | धार-गधेरा गैल-पाताला | ||
+ | धर्मक् धाम यो धाम देवाला | ||
+ | के भाल मैंस के भलि वाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | हरि-हरद्वार यां बदरी-केदार | ||
+ | बदरी केदार यां गंगाकि धार | ||
+ | धुरा काफल धुरा बाजाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | के भलो मुकुट हिमाल देखिं | ||
+ | के भलो मुलुक कमाल देखिं | ||
+ | भट-गहत ग्युं मडुवै दाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | ट्योड़-म्योड़ बाट घट रिंगनी | ||
+ | बण-बण हौल छीड़ नाचनी | ||
+ | हमरि यां छ बड़ि बुति-धाणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | बुरुशि फुलि उ पारा डाणी | ||
+ | मैझै कुनूं हो उ मेरि राणी | ||
+ | बांजा का धुरा मेरि पराणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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+ | धनकि खांणि यो पहाडोंकि राणी | ||
+ | ल्ही जाओ न म्यार पहाड़ छांणी | ||
+ | बड़ि अथाणि को पहाड़ चांणी | ||
+ | माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।। | ||
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03:17, 25 मार्च 2010 के समय का अवतरण
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ठण्डी है हवा, ठण्डा है पानी
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी
किसी ने न जानी, किसी ने न जानी
किसी ने न जानी, ठण्डा है पानी।।
वेदों की वाणी, यहाँ ज्ञान की खानें
ऋषि -मुनियों की यह राजधानी
गो-मुख गंगा, सरयू का पानी
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
चोटियाँ, छोटी नदियाँ, गहरे पाताल से
धर्म का धाम, यह देवताओं का धाम
क्या ही अच्छे लोग, क्या ही सुन्दर वाणी
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
हरि का हरिद्वार यहाँ बद्री-केदार
बद्री केदार यहाँ गंगा की धार
काफल, बांज के घने जंगल
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
सुन्दर हिमालय का मुकुट दिखता यहाँ से
क्या ही सुन्दर देश कमाल दिखता यहाँ से
भट, गहत, गेहूँ, कोन्दों की दानी
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
टेढ़े-मेढ़े रास्ते, पनघट घूमते हैं
वन-वन कोहरा, झरने नाचते हैं
हमारे यहाँ है बहुत काम
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
बुराँश खिला है उस पार पहाड़ी में
मुझे लग रहा है मेरी रानी
बांज के जंगल में बसे मेरे प्राण
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
धन की खान यह पहाड़ों की रानी
ले जाओ न मेरे पहाड़ को चुन चुन कर
बड़ा कठिन है पहाड़ को देखना
माया पहाड़ की, किसी ने न जानी।।
मूल कुमाउनी पाठ
ठण्डि छ हावा, ठण्डो छ पाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी
कैलै न जॉंणी, कैलै न जॉंणी
कैलै न जॉंणी, ठण्डो छ पॉंणी ।।
वेदोंकि वाणी या ज्ञानकि खांणि
ऋषि-मुनियोंकि यो राजधाणी
गो-मुख गंगा सरमूल पाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
धार-गधेरा गैल-पाताला
धर्मक् धाम यो धाम देवाला
के भाल मैंस के भलि वाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
हरि-हरद्वार यां बदरी-केदार
बदरी केदार यां गंगाकि धार
धुरा काफल धुरा बाजाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
के भलो मुकुट हिमाल देखिं
के भलो मुलुक कमाल देखिं
भट-गहत ग्युं मडुवै दाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
ट्योड़-म्योड़ बाट घट रिंगनी
बण-बण हौल छीड़ नाचनी
हमरि यां छ बड़ि बुति-धाणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
बुरुशि फुलि उ पारा डाणी
मैझै कुनूं हो उ मेरि राणी
बांजा का धुरा मेरि पराणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।
धनकि खांणि यो पहाडोंकि राणी
ल्ही जाओ न म्यार पहाड़ छांणी
बड़ि अथाणि को पहाड़ चांणी
माया पहाड़कि कैलै न जॉंणी ।।