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"साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं / अख़्तर अंसारी" के अवतरणों में अंतर
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05:24, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं
एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रंगो की एवज़<ref>बदले</ref> ख़ून-ए-जिगर भरते हैं
इशरत-ए-रफ़्ता<ref>गुजरे हुए खुशी भरे दिन</ref> ने जा कर न किया याद हमें
इशरत-ए-रफ़्ता को हम याद किया करते हैं
आसमां से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी
अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं
शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन
अच्छे शायर ये सुना है कि जवां मरते हैं
शब्दार्थ
<references/>