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|रचनाकार=अख़्तर अंसारी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं
साफ़ ज़ाहिर एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है निगाहों से कि हम मरते हैं <br>जवानी गोया मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं जिस में रंगो की एवज़<brref>बदले<br/ref>ख़ून-ए-जिगर भरते हैं
एक तस्वीरइशरत-ए-मुहब्बत है जवानी गोया रफ़्ता<brref>गुजरे हुए खुशी भरे दिन</ref> ने जा कर न किया याद हमें जिस में रंगो की इवज़ ख़ूनइशरत-ए-जिगर भरते रफ़्ता को हम याद किया करते हैं<br><br>
इशरत-ए-रफ़्ता ने जा कर आसमां से कभी देखी किया याद हमें <br>गई अपनी ख़ुशी इशरत-ए-रफ़्ता को अब ये हालात हैं कि हम याद किया करते हँसते हुए डरते हैं <br><br>
आस्माँ से कभी देखी न गई अपनी ख़ुशी <br>अब ये हालात हैं कि हम हँसते हुए डरते हैं <br><br> शेर कहते हो बहुत ख़ूब तुम "अख्तर" लेकिन<br>अच्छे शायर ये सुना है कि जवाँ जवां मरते हैं <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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