भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हंगामा है क्यूँ बरपा / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
छो
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है<br>
+
<poem>
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है<br><br>
+
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
 +
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
  
ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं<br>
+
ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़<ref>धर्मोपदेशक</ref> की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है<br><br>
+
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है
  
वाइज़= धर्मोपदेशक<br>
+
उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
 +
मक़सूद<ref>मनोरथ</ref> है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है
  
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना<br>
+
वां<ref>वहाँ</ref> दिल में कि दो सदमे,यां<ref>यहाँ</ref> जी में कि सब सह लो
मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है<br><br>
+
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है
  
मक़सूद= मनोरथ<br>
+
हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही<ref>दैवी प्रकाश</ref> से
 +
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है
  
वाँ दिल में कि सदमे दो या जी में के सब सह लो<br>
+
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत<ref>प्रकृति</ref> के करिश्मे हैं
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है<br><br>
+
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है
 
+
</poem>
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से<br>
+
{{KKMeaning}}
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है<br><br>
+
 
+
अनवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश<br>
+
 
+
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं<br>
+
बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है <br><br>
+
 
+
फ़ितरत= प्रकृति
+

06:07, 26 मार्च 2010 का अवतरण

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़<ref>धर्मोपदेशक</ref> की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद<ref>मनोरथ</ref> है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां<ref>वहाँ</ref> दिल में कि दो सदमे,यां<ref>यहाँ</ref> जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही<ref>दैवी प्रकाश</ref> से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत<ref>प्रकृति</ref> के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

शब्दार्थ
<references/>