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"सूप का शायक़ हूँ यख़नी होगी क्या / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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सूप का शायक़ हूँ यख़नी होगी क्या
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सूप का शायक़<ref>शौक़ीन</ref> हूँ, यख़नी<ref>एक किस्म का शोरबा जो पुलाव पर डाला जाता है</ref> होगी क्या
चाहिए कटलेट यह कीमा क्या करूँ
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चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ
  
लैथरिज की चाहिए रीडर मुझे
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शेख़ सादी की करीमा क्या करूँ
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शेख़ सादी की करीमा,<ref>शेख़ सादी की एक क़िताब जिसमें ईश्वर का गुणगान किया गया है</ref> क्या करूँ
  
खींचते हैं हर तरफ़ तानें हरीफ़
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खींचते हैं हर तरफ़, तानें हरीफ़<ref>दुश्मन या विरोधी</ref>
फिर मैं अपने सुर को धीमा क्यों करूँ
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फिर मैं अपने सुर को, धीमा क्यों करूँ
  
डाक्टर से दोस्ती लड़ने से बैर
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डाक्टर से दोस्ती, लड़ने से बैर
फिर मैं अपनी जान बीमा क्या करूँ
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फिर मैं अपनी जान, बीमा क्या करूँ
  
चांद में आया नज़र ग़ारे-मोहीब
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चांद में आया नज़र, ग़ारे-मोहीब<ref>गहरी गुफ़ा</ref>
हाये अब माहे-सीमा क्या करूँ
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हाये अब ऐ, माहे-सीमा<ref>चन्द्रमुखी</ref> क्या करूँ
 
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'''शब्दार्थ :
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शायक़= शौक़ीन, चाहने वाला;
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करीमा= शेख़ सादी की एक क़िताब जिसमें ईश्वर का गुणगान किया गया है।;
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हरीफ़=दुश्मन या विरोधी;
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ग़ारे-मोहीब=गहरी गुफ़ा;
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माहे-सीमा= चन्द्रमुखी 
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06:15, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण

सूप का शायक़<ref>शौक़ीन</ref> हूँ, यख़नी<ref>एक किस्म का शोरबा जो पुलाव पर डाला जाता है</ref> होगी क्या
चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ

लैथरिज<ref>एक लेखक</ref> की चाहिए, रीडर मुझे
शेख़ सादी की करीमा,<ref>शेख़ सादी की एक क़िताब जिसमें ईश्वर का गुणगान किया गया है</ref> क्या करूँ

खींचते हैं हर तरफ़, तानें हरीफ़<ref>दुश्मन या विरोधी</ref>
फिर मैं अपने सुर को, धीमा क्यों करूँ

डाक्टर से दोस्ती, लड़ने से बैर
फिर मैं अपनी जान, बीमा क्या करूँ

चांद में आया नज़र, ग़ारे-मोहीब<ref>गहरी गुफ़ा</ref>
हाये अब ऐ, माहे-सीमा<ref>चन्द्रमुखी</ref> क्या करूँ

शब्दार्थ
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