भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> शेख़ जी अपनी सी बकते ह…) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी | सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी | ||
− | + | अहले-सजदा सर पटकते ही रहे | |
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए | जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए | ||
जो सितारे थे चमकते ही रहे | जो सितारे थे चमकते ही रहे | ||
</poem> | </poem> |
06:41, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण
शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे
वह थियेटर में थिरकते ही रहे
दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार
वह कमेटी में मटकते ही रहे
सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी
अहले-सजदा सर पटकते ही रहे
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए
जो सितारे थे चमकते ही रहे