"दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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खेल लड़कों का हुआ, दीदा-ए-बीना<ref>देखने वाली आँख</ref> न हुआ | खेल लड़कों का हुआ, दीदा-ए-बीना<ref>देखने वाली आँख</ref> न हुआ | ||
थी ख़बर गरम कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े | थी ख़बर गरम कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े | ||
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18:41, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण
दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब<ref>त्रोध और अतयाचार का पात्र</ref> जब कोई हम सा न हुआ
फिर ग़लत क्या है कि हम सा कोई पैदा न हुआ
बन्दगी में भी वह आज़ाद-ओ-ख़ुदबीं<ref>स्वच्छंद और अभिमानी</ref> हैं कि हम
उलटे फिर आए दर-ए-काबा अगर वा<ref>खुला</ref> न हुआ
सबको मक़बूल<ref>स्वीकार</ref> है दावा तेरी यकताई<ref>अदिव्रतीयता</ref> का
रूबरू<ref>सामने</ref> कोई बुत-ए-आईना-सीमा<ref>आईने से चमकने वाला</ref> न हुआ
कम नहीं, नाज़िश-ए-हमनामी-ए-चश्म-ए-ख़ूबां<ref>प्रेयसियो की आंख के समान होने का गर्व</ref>
तेरा बीमार, बुरा क्या है, गर अच्छा न हुआ
सीने का दाग़ है वो नाला<ref>आह, रुदन</ref> कि लब तक न गया
ख़ाक का रिज़क़<ref>खुराक</ref> है वो क़तरा जो दरिया न हुआ
नाम का मेरे है जो दुःख कि किसी को न मिला
काम<ref>कर्म, इच्छा</ref> में मेरे है जो फ़ितना<ref>संघर्ष</ref> कि बरपा<ref>उठना</ref> न हुआ
हर बुन-ए-मू<ref>बाल की जड़</ref> से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूं-नाब<ref>शुद्द रक्त</ref>
हमज़ा<ref>एक फारसी कथा का नायक</ref> का क़िस्सा हुआ, इ्श्क़ का चर्चा न हुआ
क़तरे में दिजला<ref>टिगरिस दरिया</ref> दिखाई न दे और जुज़व<ref>अंश</ref> में कुल<ref>पूर्ण</ref>
खेल लड़कों का हुआ, दीदा-ए-बीना<ref>देखने वाली आँख</ref> न हुआ
थी ख़बर गरम कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े
देखने हम भी गये थे, पे<ref>पर, लेकिन</ref> तमाशा न हुआ