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"दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा न हुआ <br><br>
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07:24, 27 मार्च 2010 के समय का अवतरण

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा<ref>दवा का आभारी</ref> न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ

जमा करते हो क्यों रक़ीबों को?
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

हम कहां क़िस्मत आज़माने जाएं?
तू ही जब ख़ंजर-आज़मा<ref>ख़ंजर चलाने वाला</ref> न हुआ

कितने शीरीं हैं तेरे लब! कि रक़ीब
गालियां खाके बे-मज़ा न हुआ

है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ

क्या वो नमरूद<ref>एक प्राचीन राजा जो अपने-आप को खुदा कहता था</ref> की ख़ुदाई थी
बंदगी<ref>पूजा</ref> में मेरा भला न हुआ

जान दी, दी हुई उसी की थी
हक़<ref>सच</ref> तो यूं है, कि हक़<ref>दावा</ref> अदा न हुआ

ज़ख़्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया रवां<ref>चलना,चालू</ref> न हुआ

रहज़नी<ref>डाका</ref> है कि दिल-सितानी<ref>दिल की चोरी</ref> है?
लेके दिल दिलसितां<ref>दिल का चोर</ref> रवाना हुआ

कुछ तो पढ़िये कि लोग कहते हैं
"आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा<ref>ग़ज़ल सुनाने वाला</ref> न हुआ"

शब्दार्थ
<references/>