भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी | ||
+ | क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी | ||
− | + | कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है | |
− | + | मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी | |
− | + | मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है | |
− | + | मेरे अच्छे दिनों की आशना थी | |
− | + | जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना | |
− | + | तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी | |
− | + | मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>आराम, रोग से मुक्ति</ref> है | |
− | + | मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी | |
− | + | </poem> | |
− | मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा | + | {{KKMeaning}} |
− | मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी< | + | |
− | + | ||
− | + |
06:55, 28 मार्च 2010 का अवतरण
हमारे शौक़ की ये इन्तिहा थी
क़दम रखा कि मंज़िल रास्ता थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मोहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मेरे अच्छे दिनों की आशना थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>आराम, रोग से मुक्ति</ref> है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
शब्दार्थ
<references/>