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"मुझको यक़ीं है सच कहती थीं / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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− | + | एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं | |
− | + | एक वो दिन जब दिल में सारी भोली बातें रहती थीं | |
− | + | एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामां रहता है | |
− | + | एक वो घर जिसमें मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं | |
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07:15, 28 मार्च 2010 का अवतरण
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया
एक वो दिन दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब 'आओ खेलें' सारी गलियाँ कहती थीं
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में सारी भोली बातें रहती थीं
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामां रहता है
एक वो घर जिसमें मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं