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<Poem>
 एक मोअ'म्मा <ref>पहेली</ref> है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का
एक गोशा <ref>कोना</ref> है यह दुनिया इसी वीराने का
मुख़्तसर <ref>संक्षेप में</ref> क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का
हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम <ref>मंदिर और मस्जिद</ref> की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का
हर नफ़स <ref>सांस</ref> उमरे -गुज़िश्ता <ref>बीत चुका समय</ref> की है मय्यत <ref>मौत का मातम</ref> फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का
</poem>
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