"एक मोअ'म्मा है समझने का / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर
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− | एक मोअ'म्मा है समझने का ना समझाने का | + | {{KKGlobal}} |
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+ | एक मोअ'म्मा<ref>पहेली</ref> है समझने का ना समझाने का | ||
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− | ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का | + | ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का |
− | एक गोशा है यह दुनिया इसी वीराने का | + | एक गोशा<ref>कोना</ref> है यह दुनिया इसी वीराने का |
− | मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ | + | मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ |
− | राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का | + | राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का |
− | तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग | + | तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग |
− | आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का | + | आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का |
− | दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें | + | दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें |
− | सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का | + | सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का |
− | हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम की गलियाँ | + | हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम<ref>मंदिर और मस्जिद</ref> की गलियाँ |
− | कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का | + | कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का |
− | हर नफ़स उमरे गुज़िश्ता की है | + | हर नफ़स<ref>सांस</ref> उमरे-गुज़िश्ता<ref>बीत चुका समय</ref> की है मय्यत<ref>मौत का मातम</ref> फ़ानी |
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का | ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का | ||
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07:26, 29 मार्च 2010 के समय का अवतरण
एक मोअ'म्मा<ref>पहेली</ref> है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का
एक गोशा<ref>कोना</ref> है यह दुनिया इसी वीराने का
मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का
तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का
दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का
हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम<ref>मंदिर और मस्जिद</ref> की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का
हर नफ़स<ref>सांस</ref> उमरे-गुज़िश्ता<ref>बीत चुका समय</ref> की है मय्यत<ref>मौत का मातम</ref> फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का