भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वह चेहरा / भरत प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत प्रसाद |संग्रह=एक पेड़ की आत्मकथा / भरत प्रस…)
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
और मैं निकम्मा-सा
 
और मैं निकम्मा-सा
 
चुपचाप बैठा हुआ हूँ!
 
चुपचाप बैठा हुआ हूँ!
 +
 +
हमें इसके लिए भी
 +
माफ़ कर देना
 +
कि हमारी रगों में
 +
तुम्हारे दूध का ख़ून नहीं
 +
गंदा-सा कायरपन दौड़ रहा है!
 +
 +
हमें वैसा बिल्कुल मत समझना
 +
जैसा कि लोग कहते हैं
 +
हमें गर समझना है
 +
तो बंजर को समझना
 +
नाले को समझना
 +
घास चरने के दौरान
 +
मुँह में चुभते हुए काँटे
 +
और गर्दन में धँसे हुए हथियार को समझना।
 +
 +
हमें माफ़ कर देना
 +
हम तुम्हारी तरह पशु नहीं
 +
बुद्धिमान आदमी हैं!
 +
  
 
</poem>
 
</poem>

11:44, 29 मार्च 2010 का अवतरण

गाय का कटा हुआ सिर कुल्हाड़ी से फटता देखकर

हमें माफ़ कर देना
इसके बावजूद
कि हम अंधे नहीं हैं
और तुम्हें रोज़-रोज़ कटता हुआ देखना
बर्दाश्त कर लेते हैं!

हमें माफ़ कर देना
इसके बावजूद
कि तुम्हारी बाहर निकली हुई मुर्दा आँखों को
एकटक देखते हैं
और कोई दर्द नहीं उठता!

हमें इसके लिए भी
माफ़ कर देना
कि वर्षों से तुम्हारे कटे हुए सिर को
लगातार फोड़ा जा रहा है
और मैं निकम्मा-सा
चुपचाप बैठा हुआ हूँ!

हमें इसके लिए भी
माफ़ कर देना
कि हमारी रगों में
तुम्हारे दूध का ख़ून नहीं
गंदा-सा कायरपन दौड़ रहा है!

हमें वैसा बिल्कुल मत समझना
जैसा कि लोग कहते हैं
हमें गर समझना है
तो बंजर को समझना
नाले को समझना
घास चरने के दौरान
मुँह में चुभते हुए काँटे
और गर्दन में धँसे हुए हथियार को समझना।

हमें माफ़ कर देना
हम तुम्हारी तरह पशु नहीं
बुद्धिमान आदमी हैं!