भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=जावेद अख़्तर | + | |रचनाकार=जावेद अख़्तर |
+ | |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर | ||
}} | }} | ||
− | [[Category: | + | [[Category:ग़ज़ल]] |
<poem> | <poem> | ||
− | हमारे शौक़ की ये | + | हमारे शौक़ की ये इन्तहा<ref>हद</ref> थी |
− | क़दम | + | क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी |
+ | |||
+ | बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वो | ||
+ | हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी | ||
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है | कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है | ||
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी | मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी | ||
− | + | मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था | |
− | + | मिरे अंजाम की वो इब्तदा<ref>शुरुआत</ref> थी | |
+ | |||
+ | मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है | ||
+ | मिरे अच्छे दिनों की आशना<ref>परिचित</ref> थी | ||
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना | जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना | ||
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी | तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी | ||
− | मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref> | + | मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>रोग से मुक्ति</ref> है |
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी | मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी | ||
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
07:46, 30 मार्च 2010 का अवतरण
हमारे शौक़ की ये इन्तहा<ref>हद</ref> थी
क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी
बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तदा<ref>शुरुआत</ref> थी
मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मिरे अच्छे दिनों की आशना<ref>परिचित</ref> थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा<ref>रोग से मुक्ति</ref> है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
शब्दार्थ
<references/>