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"दिल में महक रहे हैं / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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08:01, 30 मार्च 2010 का अवतरण
दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूल
पलकों में खिलनेवाले हैं शायद लहू के फूल
अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़-हर्फ़
अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू के फूल
कलियाँ चटक रही थी कि आवाज़ थी कोई
अब तक समाअतों<ref>सुनने की शक्ति</ref> में हैं इक ख़ुशगुलू<ref>अच्छी आवाज़ वाला</ref> के फूल
मेरे लहू का रंग है हर नोक-ए-ख़ार<ref>कांटे की नोक</ref> पर
सेहरा<ref>वीराना</ref> में हर तरफ़ है मिरी जुस्तजू<ref>तलाश</ref> के फूल
दीवाने कल जो लोग थे फूलों के इश्क़ में
अब उनके दामनों में भरे हैं रफ़ू के फूल
शब्दार्थ
<references/>