भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सच ये है बेकार हमें ग़म होता है / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= जावेद अख़्तर | |रचनाकार= जावेद अख़्तर | ||
+ | |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category:ग़ज़ल]] | |
− | सच ये है बेकार हमें ग़म होता है | + | <poem> |
− | जो चाहा था दुनिया में कम होता है | + | सच ये है बेकार हमें ग़म होता है |
+ | जो चाहा था दुनिया में कम होता है | ||
− | ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम | + | ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम |
− | हमसे पूछो कैसा आलम होता है | + | हमसे पूछो कैसा आलम होता है |
− | ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की | + | ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की |
− | जब होता है कोई | + | जब होता है कोई हमदम होता है |
− | ज़ख़्म तो | + | ज़ख़्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं |
− | लोगों से सुनते हैं मरहम होता है | + | लोगों से सुनते हैं मरहम होता है |
− | + | ज़हन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं | |
− | जब तेरी यादों का मौसम होता है < | + | जब तेरी यादों का मौसम होता है |
+ | </poem> |
08:11, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण
सच ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है
ज़ख़्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है