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"लुंपेन का गीत / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
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हर रात हमारी जुए में | हर रात हमारी जुए में | ||
कोई न कोई जीत लेता है चाँद | कोई न कोई जीत लेता है चाँद | ||
− | चाँद | + | चाँद को तुड़वा कर हम खुदरे तारे बना लेते हैं |
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हमारी जेबें फटी हैं | हमारी जेबें फटी हैं |
06:43, 31 मार्च 2010 के समय का अवतरण
हर रात हमारी जुए में
कोई न कोई जीत लेता है चाँद
चाँद को तुड़वा कर हम खुदरे तारे बना लेते हैं
हमारी जेबें फटी हैं
उन्हीं छेदों से सारे तारे गिर जाते हैण
उड़कर चले हैं आकाश में
तब नींद आती है हमारी ज़र्द आँखों में
स्वप्न के हिंडोले में हम काँपते हैं थर-थर
हमें ढोते हुए चलती चली जाती है रात
रात जैसे एक पुलिस की गाड़ी.