भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तरकश / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
* [[बहाना ढूँढते रहते हैं / जावेद अख़्तर]] | * [[बहाना ढूँढते रहते हैं / जावेद अख़्तर]] | ||
* [[बेघर / जावेद अख़्तर]] | * [[बेघर / जावेद अख़्तर]] | ||
+ | * [[दोराहा / जावेद अख़्तर]] | ||
* [[दुश्वारी / जावेद अख़्तर]] | * [[दुश्वारी / जावेद अख़्तर]] | ||
* [[मुझको यक़ीं है सच कहती थीं / जावेद अख़्तर]] | * [[मुझको यक़ीं है सच कहती थीं / जावेद अख़्तर]] |
02:32, 2 अप्रैल 2010 का अवतरण
तरकश
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | ग़ालिब |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | 1995 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़लें, नज़्में |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
<sort order="asc" class="ul">
- मेरा आँगन, मेरा पेड़ / जावेद अख़्तर
- बहाना ढूँढते रहते हैं / जावेद अख़्तर
- बेघर / जावेद अख़्तर
- दोराहा / जावेद अख़्तर
- दुश्वारी / जावेद अख़्तर
- मुझको यक़ीं है सच कहती थीं / जावेद अख़्तर
- हम तो बचपन में भी अकेले थे / जावेद अख़्तर
- सच ये है बेकार हमें ग़म होता है / जावेद अख़्तर
- शहर के दुकाँदारो / जावेद अख़्तर
- ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब / जावेद अख़्तर
- दर्द के फूल भी खिलते हैं / जावेद अख़्तर
- दिल में महक रहे हैं / जावेद अख़्तर
- दुख के जंगल में फिरते हैं / जावेद अख़्तर
- हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी / जावेद अख़्तर
- मैं और मिरी आवारगी / जावेद अख़्तर
</sort>