भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Satpal khayal (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> जब इरादा कर…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:01, 3 अप्रैल 2010 का अवतरण
जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
खुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़
बिजलियाँ चमकी तो हमको रास्ता दिखने लगा
हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ
क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें
क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ
फैसला मक़तूल के हक़ मे नहीं होगा कभी
ये वकालत और मुन्सिफ़ सब हैं कातिल की तरफ
है अँधेरी कोठरी मे नूर की खिड़की 'ख़याल'
आँख अपनी बंद करके देख तो दिल की तरफ