"फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी यों भी गुज़र ही जाती | ज़िन्दगी यों भी गुज़र ही जाती | ||
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मैंने मजनूं पे लड़कपन में 'असद' | मैंने मजनूं पे लड़कपन में 'असद' | ||
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18:23, 13 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
फिर मुझे दीदा-ए-तर<ref>भीगी हुई आँख</ref> याद आया
दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रियाद<ref>सोग का प्यासा</ref> आया
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़<ref>अभी</ref>
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
सादगी-हाए-तमन्ना, यानी
फिर वो नैरंगे-नज़र<ref>दृष्टि का सौन्दर्य</ref> याद आया
उज़्रे-वा-मांदगी<ref>थकन का बहाना</ref> ऐ हसरते-दिल
नाला<ref>रुदन</ref> करता था जिगर याद आया
ज़िन्दगी यों भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राहगुज़र याद आया
क्या ही रिज़्वां<ref>स्वर्ग का दरबान</ref> से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> में गर याद आया
आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आ के जिगर याद आया
फिर तेरे कूचे को जाता है ख़याल
दिल-ए-गुमगश्ता<ref>खोया हुआ दिल</ref> मगर याद आया
कोई वीरानी-सी वीरानी है
दश्त<ref>जंगल</ref> को देख के घर याद आया
मैंने मजनूं पे लड़कपन में 'असद'
संग<ref>पत्थर</ref> उठाया था कि सर याद आया