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23:23, 14 अप्रैल 2010 का अवतरण
पता नहीं कितनी रिक्तता थी- जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में बीत गया .
भलमनसाहत और मानसून के बिच खड़ा मैं ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ मैं अपनी व्यवस्थाओं में बीमार हूँ .