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भलमनसाहत  
 
भलमनसाहत  
  
और मानसून के बिच खड़ा मैं  
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और मानसून के बीच खड़ा मैं  
  
 
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
 
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ

23:31, 14 अप्रैल 2010 का अवतरण

पता नहीं कितनी रिक्तता थी-

जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया

पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे

मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में

बीत गया .


भलमनसाहत

और मानसून के बीच खड़ा मैं

ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ

मैं अपनी व्यवस्थाओं में

बीमार हू