भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाइकु नवगीत / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश व्योम }} <poem> छिड़ता युद्ध बिखरता त्रासद इंस...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=जगदीश व्योम
 
|रचनाकार=जगदीश व्योम
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatNavgeet}}
 +
 
<poem>
 
<poem>
 
छिड़ता युद्ध
 
छिड़ता युद्ध

09:20, 15 अप्रैल 2010 का अवतरण

छिड़ता युद्ध
बिखरता त्रासद
इंसां रोता है

जन संशय
त्रासदी ओढ़कर
आगे आया है

महानाश का
विकट राग फिर
युग ने गाया है

पल में नाश
सृजन सदियों का
ऐसे होता है

बाट जोहती
थकित मनुजता
ले टूटी कश्ती

भय की छाया
व्यथित विकलता
औ फाकामस्ती

दंभ जनित
कंकाल सृजन के
कोई ढोता है

उठो मनुज
रोकनी पड़ेगी, ये
पागल आंधी

आज उगाने होंगे
घर घर में
युग के गांधी

मिलता व्योम
विरासत में, युग
जैसा बोता है